अज्ञानता के अन्धकार में डूबती झारखण्ड की युवापीढ़ी

 



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भगवान बिरसा के जन्मदिन पर अस्तित्व में आये भारतवर्ष का 28वाँ प्रदेश झारखण्ड  विविधताओं का प्रदेश है। यह विभिन्नताओं का प्रान्त है। हर घड़ी हर पल नवीन जिजीविषा का राज्य है। भारत का शायद ही कोई प्रदेश इतना वैविध्यपूर्ण है जितना झारखण्ड। अपनी अपूर्व प्रतिभा से प्रतिभासित होता झारखण्ड वस्तुतः सर्वविध वैविध्यता का प्रदेश है। भारत का रूर है।

      15 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आए इस प्रदेश का इतिहास अत्यन्त प्राचीन,  इसका भूगोल अद्भुत और इसकी संस्कृति अतिसमृद्ध है। महाभारत काल से लेकर आज तक अनेक आरोह-अवरोह का साक्षी रहा है यह। सदियों से इसकी गोद में विभिन्न जाति धर्मों के लोगों ने अपनी जीवनशैली और जीने की कला को विकसित किया है।

       सम्प्रति झारखण्ड पाँच प्रमंडलों और चौबीस जिलों में विभक्त है। संताल परगना, कोल्हान, पलामु, उत्तरी छोटानागपुर और दक्षिणी छोटानागपुर इन पाँच प्रमण्डलों में न केवल क्षेत्रीय विविधता है अपितु भाषा, बोली, तीज-त्यौहार, आचार -विचार, रहन-सहन और धार्मिक परम्पराओं में भी व्यापक अन्तर है। यही अन्तर विकास के मापदण्ड पर भी दिखाई देता है।

विकास का प्रथम पैमाना शिक्षा को माना जाता है। शिक्षा चाहे स्कुली हो या उच्च शिक्षा, हमारा संविधान इसे प्राप्त कराने का आग्रही है। सरकार का प्रथम दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के मानवीय विकास को सुनिश्चित करे। गुणवत्तापूर्ण और रोजगारोन्मुखी शिक्षा की व्यवस्था करे। शिक्षाकेन्द्रों में भौतिक संरचनाओं के विकास के साथ ही मानवसम्पदा भी उपलब्ध कराए। अत्यन्त खेद और ग्लानि की बात है कि अपनी स्थापना के दो दशकों के बाद भी झारखण्ड इस मामले में राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सबसे निचले पायदान पर है।

      उच्च शिक्षा में निचले पायदान पर रहनेवाले झारखंड में पिछले 22 वर्षों में कई नए काॅलेज और विश्वविद्यालय तो खुले पर सुविधाएँ नगण्य। भवन हैं तो उपस्कर नहीं। छात्र हैं तो प्राध्यापक नहीं। प्रयोगशालाएँ हैं तो उपकरण नहीं। पुस्तककालय हैं तो पुस्तकें नहीं।

नामांकन, परीक्षा और डिग्रीवितरण की अविच्छन्न परम्परा बनी हुई है। तकनीकी शिक्षा के लिए भी कई संस्थानों की स्थापना हुई। पर कमोवेश यही स्थिति वहाँ भी  है। जिसके कारण झारखंड इसमें अभी भी काफी पीछे है। राज्य में न केवल नए उच्च शिक्षण संस्थान खोलने की आवश्यकता है, बल्कि पूर्व से संचालित संस्थानों में संरचनाओं के विकास तथा गुणवत्ता में सुधार लाने की जरूरत है। निजी क्षेत्रों का आगमन हुआ है परन्तु वहाँ एकमात्र ध्येय आर्थिक दोहन बना हुआ है।  संस्थान आवश्यक मापदण्डों का अनुपालन भी नहीं कर रहे हैं।

झारखंड में पिछले कुछ वर्षों में कई नए कालेज खुले। प्रत्येक प्रखण्ड में काॅलेज खोलने की योजना है। नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार अध्ययन-अध्यापन प्रारम्भ कर दिया गया है। कुछ विश्वविद्यालयों में पिछले वर्ष नामांकित विद्यार्थियों के प्रथम छमाही की भी परीक्षा अभी  तक नहीं हुई है। पाठ्यक्रम तैयार है परन्तु अनेक पत्रों को पढाने वाले शिक्षक ही नहीं है। हद तो यह है कि झारखंड में वर्तमान में 18 से 30 आयु वर्ग के युवाओं के लिए प्रत्येक एक लाख की संख्या पर मात्र आठ महाविद्यालय ही उपलब्ध है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 30 महाविद्यालय है। उच्च शिक्षा के विकास के लिए विगत कई वर्षों में नई योजनाओं एवं कार्यक्रमों की शुरूआत हुई है फिर भी राष्ट्रीय मानक स्तर से झारखंड काफी पीछे है।

       वर्तमान में झारखंड में उच्च शिक्षा का सकल नामांकन अनुपात 20.9 है जबकि राष्ट्रीय सकल नामांकन अनुपात 27.1 है। हालांकि उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात में राज्य में 2012-13 की अपेक्षा लगभग 75 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसार सभी उच्चतर शिक्षण संस्थानों को मल्टीडिसीप्लिनरी के रूप में विकसित किया जाना है तथा सकल नामांकन अनुपात को वर्ष 2035 तक 50 प्रतिशत तक लाना है। इसे ध्यान में रखते हुए हाल के वर्षों में कई प्रयास हुए हैं, फिर भी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कम सकल नामांकन अनुपात, राष्ट्रीय स्तर के मुकाबले उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी, विशिष्ट शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षण संस्थानों की कमी, शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में असमानताएं, उपलब्ध शिक्षण संस्थानों में आधारभूत संरचनाओं की कमी आदि महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं।

    अब भी समय है सरकार को युद्ध स्तर पर नवीन महाविद्यालयों में प्राचार्य, शिक्षक, कर्मचारी, भवन, उपस्कर, प्रयोगशाला, उपकरण, पुस्तकालय, पुस्तकें, कम्प्युटर आदि की व्यवस्था  करनी चाहिए। धन की कोई कमी नहीं है। राजस्व के मामले में झारखण्ड अव्वल है। आधी -अधूरी तैयारी समस्याओं को जन्म देती है। पूरी तैयारी और पारदर्शिता से सरकार कदम उठाए सफलता अवश्य मिलेगी।

प्रस्तुति: डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र

विभागाध्यक्ष, संस्कृत

सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका

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