शिक्षकों की सतत साधना का आग्रही शिक्षा नीति 2020

 


डॉ धनंजय कुमार मिश्र

एस के एम यू दुमका

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शिक्षा नीति 2020 अपने प्रारंभिक दौर में है। अनेक राज्यों ने भी अपने विश्वविद्यालयों में शिक्षा नीति को स्वीकार कर कार्य का श्रीगणेश कर दिया है। झारखण्ड सरकार ने भी अपने राज्य में आधी अधूरी तैयारी के साथ ही सही इस नई शिक्षा नीति पर काम करना शुरू कर ही दिया है।

नई शिक्षा नीति जहां छात्रों की प्रतिभा को और अधिक निखार कर बेहतर बनाने के उपाय लेकर आई है, वहीं इसमें शिक्षकों के प्रशिक्षण की भी समुचित व्‍यवस्‍था की गई है जिससे शिक्षक  एक आदर्श के रूप में सामने आएं। समाज में पुनः उनकी स्वीकृति  हो और उनके द्वारा पढ़ाए गए छात्रों में भी अच्‍छे सामाजिक संस्‍‍कार देखने को मिले।

किसी भी देश की शिक्षा नीति की सफलता अध्‍यापकों की योग्‍यता, कर्मठता और प्रशिक्षण पर निर्भर करती है। नई शिक्षा नीति में अध्‍यापकों के प्रशिक्षण की नई व्‍यवस्‍था करने की बात कही गई है।

शिक्षक बनने के लिए बीएड के चार वर्षीय पाठ्यक्रम की संस्‍तुति है। अभी तक यह दो वर्ष का पाठ्यक्रम होता था। अब कक्षा बारहवीं के बाद चार  वर्षीय पाठ्यक्रम होगा। अखिल विश्‍व  में अच्‍छे शिक्षक इसी से तैयार किए जाते हैं। 

साथ ही अध्‍यापक जिस संस्था में शिक्षा देते हैं उन्‍हें वहां के सामाजिक व सांस्‍कृतिक माहौल से परिचित होना चाहिए। 

सारे विश्‍व में यही अपेक्षा की जाती है कि प्राथमिक कक्षाओं के अध्‍यापक आसपास के क्षेत्रों के ही हों तो ज्‍यादा उपयोगी रहता है। ऐसा पहले भी किया गया है और अब व्‍यापक रूप से इसका क्रियान्‍वयन होगा।

ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों से शिक्षकों की कमी को खत्म करने और गांवों के शिक्षित युवाओं को आसपास ही रोजगार मुहैया कराने के लिए सरकार ने नई शिक्षा नीति में बड़ी पहल की है। इसके तहत गांवों के प्रतिभाशाली छात्रों को शिक्षक बनने की ओर आकर्षित किया जाएगा और उन्हें बारहवीं के बाद चार साल का बीएड कोर्स करने के लिए छात्रवृत्ति भी दी जाएगी।

इस नीति में शिक्षकों के प्रशिक्षण को अत्‍यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है और उनके लगातार अपडेट रहने और सीखते रहने की अनुशंसा की गई हैं।  नई शिक्षा नीति में अध्‍यापकों को भी समय-समय पर प्रशिक्षण मिलता रहे इसकी व्‍यवस्‍था है।  एक बार प्रशिक्षण लेने के बाद  कोई भी आगे के तीस-पैंतीस साल नहीं पढ़ा सकता। पढ़ाने की विधा लगातार बदलती है। पुस्‍तकें बदलेंगी। पुस्‍तकों की वि‍षयवस्‍तु भी बदलेगी।

हर अध्‍यापक को नया सीखने के अवसरों को आत्‍मसात करना पड़ेगा। जो लगातार पढ़ेगा वही अध्‍यापक अपना सम्‍मान बच्‍चों के समक्ष सुरक्षित रख पाएगा। इसलिए अब बच्‍चे भी पढ़ेंगे और अध्‍यापक भी। अपेक्षा की जाती है कि दोनों साथ-साथ पढ़ेंगे और ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे।

झारखण्ड जैसे प्रान्त में इस शिक्षा नीति को भली-भांति अमली जामा पहनाने में कई चुनौतियां हैं। शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की कमियों को दूर करना होगा। विश्वविद्यालयों , महाविद्यालयों तथा अन्य शैक्षणिक संस्थानों में आमूल परिवर्तन करना होगा। रिक्तियां युद्ध स्तर पर भरनी होगी। आशा है झारखण्ड सरकार अपनी भावी पीढ़ी के समुचित शिक्षा के लिए आवश्यक कदम अवश्य उठाएगी।



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