सावन पूर्णिमा, रक्षाबंधन, संस्कृत दिवस और शिव की करुणामयी छाया

*सावन पूर्णिमा, रक्षाबंधन, संस्कृत दिवस और शिव की करुणामयी छाया* प्रस्तुति : डॉ धनंजय कुमार मिश्र ,विभागाध्यक्ष संस्कृत ,सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका झारखंड श्रावण मास की पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय पर्व-संगम है। इस दिन तीन महत्त्वपूर्ण अवसर एक साथ उपस्थित होते हैं—रक्षाबंधन, संस्कृत दिवस और देवघर-बासुकिनाथ के प्रसिद्ध श्रावणी मेले का समापन। सावन की हरियाली, आकाश में झूमते बादल, मंदिरों की गूँजती घंटियाँ और “हर-हर महादेव” का घोष—यह सब मिलकर भक्ति, संस्कृति और प्रकृति को एक सूत्र में पिरो देते हैं। सावन का महीना शिवभक्ति का चरम क्षण है। पूरे माह काँवरिये गंगाजल लेकर सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ धाम, देवघर पहुँचते हैं। बेलपत्र, धतूरा, दूध, गंगाजल आदि का अर्पण कर वे अपने हृदय का प्रेम शिव चरणों में समर्पित करते हैं। सावन का समापन केवल तिथियों का परिवर्तन नहीं, बल्कि उस करुणामयी यात्रा का पूर्णत्व है, जहाँ भोलेनाथ हर आह्वान पर सहज ही प्रसन्न होते हैं— *भावग्रहणं न हि पूजनं विधिः।* शिव केवल भावना को ग्रहण करते हैं, न कि विधि-विधान की कठोरता को...