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वैदिकवाङ्मये छन्दशास्त्रम् (वैदिक वाङमय में छन्दशास्त्र)

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                                                                        डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र                                                                                                                                   वैदिक वाङ्मय भारतीय मनीषा का संचित कोष है। इसके विविध विधाओं ने अखिल  विश्व के विद्वानों को अपनी ओर आकृष्ट किया है। इसमें प्रकृति की गोद में बैठे ऋषियों के उद्गार हैं , कर्मकाण्ड की पूर्ण आस्था है, काव्य की मधुर अभिव्यक्ति है , अनन्त में सूक्ष्म के अवधारण की जिज्ञासा है, तार्किक मेधा की गवेषणा है, तो विज्ञान के विविध पक्षों का उन्मीलन भी है। जहाँ वेदत्रयी, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् वैदिक वाङ्मय के बृहद् भण्डागार हैं वहीं वेदांग वेदार्थ को सरलता से समझने समझाने के लिए वेद भगवान् के अंगस्वरूप हैं। कहा भी गया है - ‘‘वेदः अङ्गयन्ते ज्ञायन्ते अमीभिः इति वेदाङ्गानि’’ अर्थात् जिससे वेदों के अर्थों को जाना जाता है, वे वेदांग कहलाते हैं। वेदांग वेदों के भाग नहीं हैं अपितु वे वेदों के स्वरूप के रक्षक हैं जो अर्थों को समझने-समझाने में सहायक होते हें। वेदांगों को जाने बिना व

शक्तिपीठों का रहस्य

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 अखिल विश्व की शक्ति का केंद्र शक्तिपीठ सनातन संस्कृति में सत्यं शिवम् सुन्दरम् का शाश्वत समन्वय है। इसके वैष्णव, शैव और शाक्त सम्प्रदाय अत्यन्त प्राचीन व सर्वथा प्रासंगिक है। तीनों सम्प्रदायों में शाक्त सम्प्रदाय प्रकृति रूपा है। प्रकृति अर्थात् नारी शक्ति। *यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:* जहां नारी शक्ति की पूजा होती है वहां देवत्व का वास होता है। शान्ति व समृद्धि रहती है।   अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का उपदेश किया गया है। श्री राम ने रावण विजय से पूर्व शक्ति की अराधना की थी। पांडवों ने भगवती की अराधना कर कौरवों पर विजय प्राप्ति का वरदान पाया था। प्रजापति दक्ष की कन्या सती और पर्वतराज हिमालय की बेटी पार्वती शक्ति स्वरूपा हैं। दुर्गा साक्षात् शक्ति हैं। नवरात्रि में शक्ति की पूजा होती है। अष्ट मातृकाएं, नव दुर्गा व दश विद्याएं सभी शक्ति स्वरूपा हैं।  पौराणिक कथाओं के अनुसार 51 शक्तिपीठ जागृत शक्तियां हैं। नवरात्रि में इन शक्तिपीठों का दर्शन मात्र मनोवांछित फल प्रदान करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 51 शक्ति के रूप में जिनका नाम मिलता है वे हैं - भुवनेशी, उ

भवान्यष्टक का पाठ खोलता है सिद्धि का मार्ग

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 *आदिगुरु शंकराचार्य कृत भवान्यष्टक का पाठ खोलता है सिद्धि का मार्ग* नवरात्रि में आदिगुरु शंकराचार्य कृत भवान्यष्टक माता रानी के सम्मुख विनम्र भाव से स्तुति करने से मां दुर्गा प्रसन्न होकर भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। भक्तों को चाहिए कि वह माता के सम्मुख भवान्यष्टक स्तुति रुप में करें। भवान्यष्टक में आठ मंत्र हैं। इसमें कहा गया है कि हे माता! आपके अतिरिक्त मेरा कोई नहीं है। एकमात्र आप ही मेरी गति हैं। हे भवानि! मैं भवसागर में पड़ा हुआ, दु:खों से भयभीत, सांसारिक बंधनों में बंधा हूं, कोई पुण्य संचय नहीं किया है, सदैव कुलाचारहीन तथा कदाचारलीन रहने से अनाथ दरिद्र जरारोगयुक्त हूं। आप मेरी रक्षा करें। मंत्र इस प्रकार है - न तातो न माता न बन्धुर्न दाता  न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता । न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥   भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।  कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं ।  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।  न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।  न जानामि पूजां न च न्यासयोगं ।  गतिस

दुर्गा सनातनी शक्ति

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  डॉ धनंजय कुमार मिश्र विभागाध्यक्ष संस्कृत एस के एम विश्वविद्यालय दुमका (झारखंड ) दुर्गा या आदिशक्ति भारतीय धर्म और आस्था की प्रमुख देवी हैं, जिन्हें जगदम्बा, नवदुर्गा, देवी, शक्ति, आद्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगज्जननी, परमेश्वरी, सुरेश्वरी, सती, साध्वी, भवानी,  परम सनातनी देवी आदि कई नामों से जाना जाता है। दुर्गा स्वयं प्रकृति है। जीवन का आधार है। भारतीय धर्म एवं दर्शन के तीनों मुख्य सम्प्रदायों के समन्वय की देवी दुर्गा हैं। शैव सम्प्रदाय की शिवा, वैष्णव सम्प्रदाय की वैष्णवी और शाक्त सम्प्रदाय की शक्ति का एकाकार रूप मां दुर्गा हैं।  शास्त्रों में भगवती दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती, परब्रह्म परमेश्वरी कहा गया है। दुर्गा अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली, ममतामयी, मोक्षदा   तथा कल्याणकारिणी हैं। शास्त्रीय मान्यता है कि शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का दुर्गा देवी विनाश करतीं हैं। वेदों, उपनिषदों और पुराणों के अनुसार  समग्र ईश्वरीय तत्त्वों की एकात्मकता का अपर नाम आद्या शक्ति है। ब्राह्मी, माहेश्वरी, एन्द्री, वारुणी, वैष्णवी आदि देवी द

महाशक्ति दुर्गा ही परब्रह्म परमात्मा

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  डॉ धनंजय कुमार मिश्र विभागाध्यक्ष संस्कृत एस के एम यू दुमका  महाशक्ति दुर्गा ही परब्रह्म हैं, जो विविध रूपों में विभिन्न लीलाएं करती हैं। इन्हीं की शक्ति से ब्रह्मा विश्व की सृष्टि, विष्णु विश्व का पालन और शिव जगत् का संहार करने में सक्षम हैं। वस्तुत: यही आद्या शक्ति सृजन, पालन और संहार करने वाली हैं। यही परा शक्ति नवदुर्गा व दश महाविद्या हैं। इनके अतिरिक्त दूसरा कोई भी सनातन या अविनाशी तत्त्व नहीं है। भारतीय संस्कृति में सर्वव्यापी चेतनसत्ता अर्थात् अपने उपास्यकी उपासना मातृरूप से, पितृरूपक्षसे अथवा स्वामिरूप से करने की परम्परा है।  उपासना किसी भी रूप से की जा सकती है, किंतु वह होनी चाहिये भावपूर्ण।  इस लोक में सम्पूर्ण जीवों के लिये मातृभाव की महिमा विशेष है। व्यक्ति अपनी सर्वाधिक श्रद्धा स्वभावतः मां के चरणों में अर्पित करता है; क्योंकि माँ की गोद में ही सर्वप्रथम उसे लोक दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। इस प्रकार माता ही सबकी आदिगुरु है और उसी की दया तथा अनुग्रह पर बालकों का ऐहिक एवं पारलौकिक कल्याण निर्भर करता है। इसीलिये 'मातृदेवो भव।' मंत्र से सर्वप्रथम स्थान माता को

त्रिविध कष्टों को दूर करता है माता रानी के प्रति भक्ति और समर्पण की भावना

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सनातन संस्कृति में सत्यं शिवम् सुन्दरम् का शाश्वत समन्वय है। इसके वैष्णव, शैव और शाक्त सम्प्रदाय अत्यन्त प्राचीन व सर्वथा प्रासंगिक है। तीनों सम्प्रदायों में शाक्त सम्प्रदाय प्रकृति रूपा है। प्रकृति अर्थात् नारी शक्ति। *यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:* जहां नारी शक्ति की पूजा होती है वहां देवत्व का वास होता है। शान्ति व समृद्धि रहती है।   अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का उपदेश किया गया है। श्री राम ने रावण विजय से पूर्व शक्ति की अराधना की थी। पांडवों ने भगवती की अराधना कर कौरवों पर विजय प्राप्ति का वरदान पाया था। प्रजापति दक्ष की कन्या सती और पर्वतराज हिमालय की बेटी पार्वती शक्ति स्वरूपा हैं। दुर्गा साक्षात् शक्ति हैं। नवरात्रि में शक्ति की पूजा होती है। अष्ट मातृकाएं, नव दुर्गा व दश विद्याएं सभी शक्ति स्वरूपा हैं।  पौराणिक कथाओं के अनुसार 51 शक्तिपीठ जागृत शक्तियां हैं। नवरात्रि में इन शक्तिपीठों का दर्शन मात्र मनोवांछित फल प्रदान करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 51 शक्ति के रूप में जिनका नाम मिलता है वे हैं - भुवनेशी, उमा, महिषमर्दिनी, श्रीसुन्दरी, विशालाक्षी

या देवी सर्वभूतेषु....

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शारदीय नवरात्रि में प्रायः हर मंदिरों, धर्म स्थानों, पांडालों में अत्यंत कर्ण प्रिय मंत्र  सुनाई पड़ता है जो  भक्ति भावना को उत्प्रेरित करता है। इन मंत्रों में एक काफी प्रचलित है - *या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।*  अर्थात् जो देवी समस्त जीवों में शक्ति रुप से स्थित है, उस देवी को नमस्कार है , नमस्कार है, नमस्कार है। यह मंत्र देवी सूक्त का है। मार्कण्डेय पुराण में नारी शक्ति को मानसिक , आत्मिक, यौगिक  आदि विभिन्न शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। देवी सूक्त के अनुसार मूलतः इक्कीस शक्तियों का निवास संसार के समस्त जीवों में है। इन मंत्रों में इन्हीं नारी शक्तियों को बार-बार नमस्कार कर कृतज्ञता प्रकट किया जाता है। ये शक्तियां हैं - विष्णु माया, चेतना, बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, क्षान्ति, जाति, लज्जा, शान्ति, श्रद्धा, कान्ति, लक्ष्मी, वृत्ति, स्मृति, दया, तुष्टि, मातृ, भ्रान्ति और व्याप्ति।  भारतीय सनातन धर्म और दर्शन में सृष्टि रचना में माया को विष्णु की ही शक्ति स्वीकार किया गया है। भगवती दुर्गा ही माया शक्ति रूपिणी है