Posts

Showing posts from November, 2023

वैदिकवाङ्मये छन्दशास्त्रम् (वैदिक वाङमय में छन्दशास्त्र)

Image
                                                                        डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र                                                                                                                                   वैदिक वाङ्मय भारतीय मनीषा का संचित कोष है। इसके विविध विधाओं ने अखिल  विश्व के विद्वानों को अपनी ओर आकृष्ट किया है। इसमें प्रकृति की गोद में बैठे ऋषियों के उद्गार हैं , कर्मकाण्ड की पूर्ण आस्था है, काव्य की मधुर अभिव्यक्ति है , अनन्त में सूक्ष्म के अवधारण की जिज्ञासा है, तार्किक मेधा की गवेषणा है, तो विज्ञान के विविध पक्षों का उन्मीलन भी है। जहाँ वेदत्रयी, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् वैदिक वाङ्मय के बृहद् भण्डागार हैं वहीं वेदांग वेदार्थ को सरलता से समझने समझाने के लिए वेद भगवान् के अंगस्वरूप हैं। कहा भी गया है - ‘‘वेदः अङ्गयन्ते ज्ञायन्ते अमीभिः इति वेदाङ्गानि’’ अर्थात् जिससे वेदों के अर्थों को जाना जाता है, वे वेदांग कहलाते हैं। वेदांग वेदों के भाग नहीं हैं अपितु वे वेदों के स्वरूप के रक्षक हैं जो अर्थों को समझने-समझाने में सहायक होते हें। वेदांगों को जाने बिना व

शक्तिपीठों का रहस्य

Image
 अखिल विश्व की शक्ति का केंद्र शक्तिपीठ सनातन संस्कृति में सत्यं शिवम् सुन्दरम् का शाश्वत समन्वय है। इसके वैष्णव, शैव और शाक्त सम्प्रदाय अत्यन्त प्राचीन व सर्वथा प्रासंगिक है। तीनों सम्प्रदायों में शाक्त सम्प्रदाय प्रकृति रूपा है। प्रकृति अर्थात् नारी शक्ति। *यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:* जहां नारी शक्ति की पूजा होती है वहां देवत्व का वास होता है। शान्ति व समृद्धि रहती है।   अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का उपदेश किया गया है। श्री राम ने रावण विजय से पूर्व शक्ति की अराधना की थी। पांडवों ने भगवती की अराधना कर कौरवों पर विजय प्राप्ति का वरदान पाया था। प्रजापति दक्ष की कन्या सती और पर्वतराज हिमालय की बेटी पार्वती शक्ति स्वरूपा हैं। दुर्गा साक्षात् शक्ति हैं। नवरात्रि में शक्ति की पूजा होती है। अष्ट मातृकाएं, नव दुर्गा व दश विद्याएं सभी शक्ति स्वरूपा हैं।  पौराणिक कथाओं के अनुसार 51 शक्तिपीठ जागृत शक्तियां हैं। नवरात्रि में इन शक्तिपीठों का दर्शन मात्र मनोवांछित फल प्रदान करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 51 शक्ति के रूप में जिनका नाम मिलता है वे हैं - भुवनेशी, उ

भवान्यष्टक का पाठ खोलता है सिद्धि का मार्ग

Image
 *आदिगुरु शंकराचार्य कृत भवान्यष्टक का पाठ खोलता है सिद्धि का मार्ग* नवरात्रि में आदिगुरु शंकराचार्य कृत भवान्यष्टक माता रानी के सम्मुख विनम्र भाव से स्तुति करने से मां दुर्गा प्रसन्न होकर भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। भक्तों को चाहिए कि वह माता के सम्मुख भवान्यष्टक स्तुति रुप में करें। भवान्यष्टक में आठ मंत्र हैं। इसमें कहा गया है कि हे माता! आपके अतिरिक्त मेरा कोई नहीं है। एकमात्र आप ही मेरी गति हैं। हे भवानि! मैं भवसागर में पड़ा हुआ, दु:खों से भयभीत, सांसारिक बंधनों में बंधा हूं, कोई पुण्य संचय नहीं किया है, सदैव कुलाचारहीन तथा कदाचारलीन रहने से अनाथ दरिद्र जरारोगयुक्त हूं। आप मेरी रक्षा करें। मंत्र इस प्रकार है - न तातो न माता न बन्धुर्न दाता  न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता । न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥   भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।  कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं ।  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।  न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।  न जानामि पूजां न च न्यासयोगं ।  गतिस