संस्कृत और भारतीय संस्कृति के अनन्य अनुरागी थे तिलक

*संस्कृत और भारतीय संस्कृति के अनन्य अनुरागी थे तिलक* डॉ धनंजय कुमार मिश्र अध्यक्ष संस्कृत विभाग सह अभिषद् सदस्य सि.का.मु.विश्वविद्यालय, दुमका --- बाल गंगाधर तिलक की आज सौवीं पुण्यतिथि है । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाले तिलक को संस्कृत व भारतीय संस्कृति से अनन्य अनुराग था। बाल गंगाधर तिलक का सार्वजनिक जीवन 1880 में एक शिक्षक और शिक्षण संस्था के संस्थापक के रुप में आरम्भ हुआ। इसके बाद केसरी और मराठा के माध्यम से उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों का विरोध तो किया ही, साथ ही भारतीयों को स्वाधीनता का पाठ भी पढ़ाया। वह एक निर्भीक सम्पादक थे, जिसके कारण उन्हें कई बार सरकारी कोप का भी सामना करना पड़ा। पारम्परिक सनातन धर्म व हिन्दू विचारधारा के प्रबल समर्थक तिलक का अध्ययन असीमित था। उनके द्वारा किये गए शोधों से उनके गहन गम्भीर अध्ययन का परिचय मिलता है। अपने धर्म में प्रगाढ़ आस्था होते हुए भी उनके व्यक्तित्व में संकीर्णता का लेशमात्र भी नहीं था। अस्पृश्यता के वह प्रबल विरोधी थे। इस विषय में एक बार उन्होंने स्वयं कहा था कि जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए वह क...