‘संताल और संताली समाज - इतिहास के आईने में’

धनंजय कुमार मिश्र विभागाध्यक्ष- संस्कृत संताल परगना महाविद्यालय, दुमका सिदो-कान्हु मुर्मू वि.वि. दुमका भारतवर्ष में संतालों के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्यता नहीं है। अद्यतन अध्ययन यह बताता है कि संताल जाति प्राचीन काल से हीं भारतवर्ष में निवास करती रही है एवं सैन्धव सभ्यता के निर्माण में इनका भी योगदान रहा है।1 वैसे संतालों की उत्पŸिा के बारे में प्रचलित धारणाएॅं अनेक हैं। कुछ लोगों के मतानुसार संताल भारतवर्ष में आर्यों के आगमन से पहले पश्चिमोŸार दिशा से प्रवेश किये2 एवं पंजाब में कुछ समय रहने के पश्चात् आगे बढते-बढते छोटानागपुर के पठार में आ बसे। कुछ लोग कहते हैं कि संताल भारतवर्ष में उŸार-पूर्व दिशा से प्रवेश कर आगे बढते हुए दामोदर नदी के दोनों तट पर बस गए।3 अन्य विद्वानों का मत है कि संताल जाति एक भ्रमणशील जाति के रूप में घुमन्तु प्रवृति वाले थे। इनका निवास यायावर होने के कारण निश्चित नहीं था। मध्य भारत की घाटियों एवं गंगा के किनारे की उर्वरा भूमि पर संताल कुछ वर्षों तक निवास किये परन्तु आक्रमण एवं दबाव में दक्षिण पश्चिम की ओर बढते-बढते छोटानागपुर के पठारों में...