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Showing posts from October, 2019

लोक आस्था का महापर्व छठ

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                                                                                     डाॅ0 धनंजय कुमार मिश्र * ‘‘समाजस्य हितम् शास्त्रेषु निहितम्’’            भारतवर्ष  विविधताओं और विभिन्नताओं का देश है। विविध परम्परा और सुसंस्कृत संस्कृति भारतवर्ष की पहचान है। प्राचीन आर्ष ग्रन्थ वर्तमान का मार्गदर्शन और भविष्य का निर्धारण करने में महती भूमिका का निर्वहण करते हैं। इन आर्ष ग्रन्थों में वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत और पुराण अतीत से आज तक हमारे जीवन पथ को आलोकित कर रहे हैं। इन ग्रन्थ-रत्नों में कर्मों की प्रधानता के द्वारा जीवन जीने की प्रेरणा दी गई है। हमारे कर्म सात्विक, शुद्ध और सुन्दर हों जिससे समाज का  कल्याण और मानवता का उत्थान होता रहे। प्रकृति और पर्यावरण के बिना मानव समाज का अस्तित्व ही नहीं अतएव उनके संरक्षण का सूक्ष्म स...

स्त्रियों का समाज में स्थान और संस्कृत में वर्णित स्त्रीविषयक चिन्तन

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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते      रमन्ते तत्र देवताः।   यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते   सर्वास्तत्राफलाः क्रिया।।    महर्षि मनु का यह श्लोक महिला सशक्तिकरण का बीजमन्त्र प्रतीत होता है। मानव जीवन का रथ एक चक्र से नहीं चल सकता। समुचित गति के लिए दोनों चक्रों का विशिष्ट महत्व है। गार्हस्थ जीवन की अपेक्षा होती है- सहयोग और सद्भावना की। स्त्री केवल पत्नी नहीं होती, अपितु वह योग्य मित्र, परामर्शदात्री, सचिव, सहायिका भी होती है। भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति सदैव एक समान न होकर अत्यधिक आरोह-अवरोह से युक्त दिखाई देती है।  विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ ‘ऋग्वेद’ के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि तात्कालीन समाज में महिलाएँ अपनी सशक्त भूमिकाओं का निर्वाह करती थी। महिलाएँ वेदाध्ययन ही नहीं करती अपितु मन्त्रों की द्रष्टा भी थी। ऋग्वेद की अनेक सूक्तों की दर्शनकत्र्री स्त्रियाँ थी। ब्रह्मवादिनी ‘घोषा’ रचित ऋग्वेद के दशम मण्डल के सूक्तों ( 39वाँ एवं 40वाँ ) को कौन नजरअंदाज कर सकता है। स्पष्ट है कि स्त्रियाँ शिक्षिता होती थी। लोपामुद्रा, सूर्या, वि...