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भारतीय अभिवादन नमस्ते, नमस्कार और प्रणाम

भारतीय संस्कृति में अभिवादन मात्र औपचारिकता नहीं, बल्कि आत्मीयता, सम्मान और आध्यात्मिक भावभूमि का प्रतीक है। जब कोई भारतीय किसी से मिलता है, तो उसके मुख से सहज ही निकलते हैं – नमस्ते, नमस्कार अथवा प्रणाम। ये तीनों शब्द देखने में समान लगते हैं, परन्तु इनके भीतर निहित भाव और प्रयोग की गरिमा भिन्न-भिन्न है। संस्कृत अव्यय नमः से उत्पन्न नमस्ते का अर्थ है – मैं आपको नमस्कार करता हूँ, आपके भीतर स्थित ईश्वर को प्रणाम करता हूँ। यह केवल व्यक्ति को नहीं, उसके भीतर विद्यमान दिव्यता को भी प्रणति है। इसलिए किसी भी समय, किसी भी स्थान, किसी भी व्यक्ति से मिलने पर “नमस्ते” कहना भारतीय जीवन में सौम्यता और शिष्टाचार का परिचायक है। यही कारण है कि आज भी विश्व भर में “नमस्ते” भारतीय संस्कृति की पहचान बन चुका है। *नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे* से तो हम सभी परिचित हैं। “नमस्कार” शब्द में थोड़ी अधिक औपचारिकता और गाम्भीर्य है। यह अधिकतर तब कहा जाता है, जब हम किसी बड़े, किसी अधिकारी, या किसी सार्वजनिक समारोह में लोगों का सामूहिक अभिवादन करते हैं। इसमें “नमः” के साथ “कार” (क्रिया) जुड़कर पूर्णता और आचरण की गरिमा प...